
यह ग्राम सातड़ा एक सन्त भोमी है, यहाँ बहुत से संतों का जन्म निवास है यह बात मैं आपको पहले पृष्ठों में बता चुका हूँ, जो बड़े-बड़े शहरों में भी इतने संत प्रचारित नहीं हुवें हैं। धन्य हो इसी धरती माता को जो दूर-दूर से लोग दर्शन करने को आते हैं और श्री मकड़ीनाथजी के चमत्कारों की आज भी अजमाइस करते हैं उनका कार्य सफल सिद्ध होता है ओर यहाँ कई पाखण्डी ढोंग रचने वाले आते हैं, उनकी पोल खुल जाती है तथा वो अफसोस एवं अचुम्बें में पड़ जाता है। यह मेरे गुरूदेवन के घुणे का प्रभाव है क्योंकि मैंन मेरे गुरूदेवन की बारह वर्ष तक सेवा की है, फिर मेरे गुरूजी विक्रम संवत 2032 में शिवशरण हो गये तो मैंने मन्नाति संत संप्रदाय के संयोगी मान कर मुझे भगवां बाना और कानों में कुण्डल धारण किया है। मैं योग सन्यास चालीस वर्षों से चला रहा हूँ यह मरें गुरू देव की अत्यन्त कृपा है और शिव गोरख माया की महरबानी है। मैं ना कोई ज्यादा पढ़ा लिखा हूँ तथा ना कोई वेद शास्त्र का ज्ञाता हूँ, मुझे गुरू दिव्य दृष्टि देकर गुरू महिमा लिखने को कहा तो समय सार के अनुसार गुरू ज्ञानगेस सासेनी प्रगट होती है, मैं एकान्त में जंगली झोंपड़ी में ही रहने से राजी रहता हूँ, क्योंकि यहां जपतप योग साधना हो सकती है तथा लेखनी लिखने का भी समय मिल सकता है, सिर्फ बड़े आश्रम पर तो तीन घण्टा रहता हूँ, शेष इकीसूं घण्टे झोपड़ी में ही रहते हैं। कहीं बाहर घुमने की मुझे शौक नहीं है, मेरे सच्चे सेवग गोरूसिंह बीका, सरदार हर समय हाजिर रहते हैं। आश्रम पर शिष्य वर्षानाथ शान्तिनाथ, वारूनाथ ये चैकस सार संभाल रखते हैं। जय गुरूदेव! ा

अब आज ग्यारवीं कथा शुरूवात कर रहे हैं, मैंने मेरे गुरूदेव दयामय श्री मकड़ीनाथजी महाराज की महिमा लम्बे विस्तार से लिखी है, लेकिन लेखनी लिखना एक खाण्डे की धार होती है एक चारण कवि सम्मेलन में चर्चा चलने लगी, जब स्टेज पर आकर अपनी एक कविता कही। उसी सभा समुदाय में दो लेखक बैठे थे, वो कविराज के शब्दों की तुलना कर रहे थे, कवि ने कहा कि – ‘‘कवि के अखर सबही स्वखर कहबा में ही बैण, वोही काजळ ठीकरी और वोही काजळ नैण।।’’ जब एक लेखक ने सुनकर कवि से कहा कि आपने ऐसे क्यों कहा कि ‘अखर सबहि शखर’ ऐसे कहने का अधिकार नहीं है तुम्हें, जब कवि ने कहा देखो जो आप लेखनी लिख रहे हो उनका प्रचारण हम लाखों तरह से कर सकते हैं, लेकिन लेखनी के अनुसार ही हम चलते हैं। आजकल दुनियां आंखों देखी मानती है और कागज लेखी कम मानते हैं क्योंकि धार्मिक ग्रन्थ पुस्तकों को पसन्द नहीं करते हैं। देखो आजकल युवा वर्ग अधिकतर उपन्यास की पुस्तकें अपनाते हैं, यह तो सब वर्तमान जमाने की बातें हैं अब मेरे कहने का मकसद यही है कि कविता करना एवं लेखनी लिखना यह तो मैं आपको एक उदाहरण के रूप में कहा है, आगे मैं मेरे गुरू महाराज की महिमा का ही वर्णन करना चाहता हूँ। देखो एक समय मेरे गुरूजी ने कहा था कि गुरू की सौ वन्दना करो, लेकिन निन्दा करना महापाप है, वह बात सबके सामने कही थी। उस समय मेरे गुरूभाई श्री गणेशनाथजी, श्री मंगतुनाथजी, श्री शंकरशम्भुनाथजी तथा चैथे श्री लेखनाथजी महाराज और पांचवें नम्बर में मैं भी इस जमात में जुड़ा हुवा हूँ और श्री नाथजी के मृहस्ती सेवग भी बहुत हुवे हैं। उनका विवरण और वचन सिद्ध संतों का चमत्कार यह सब मैं पहले पृष्ठों में कह चुका हूँ, सेठ रामेश्वरलाल की सेवा से संतुष्ट होिकर घनिष्ट प्रेमी था, इसकी कारण श्री नाथजी की महरबानी से सेठ गढ़भेता बंगाल में जाकर धनपति सेठ कहाने लगे, जब उनका अच्छा कारोबार जम जाने पर सेठजी श्री नाथजी महाराज को निमन्त्रण पत्र दिया और कहा महाराज आप गढ़भेता पधारने की कृपा करें जब ज्यादा कहने पर नाथजी ने विचार कर लिया तो इधर-उधर घूमते हुए गढ़भेता पहुंचे।

सेठ-सेठानी एवं उनके परवार सहित बहुत खुशी होकर संत स्वागत किया ओर बाहर से बहुत लोग दर्शनादिक आये और हर रात सतसंग का प्रोग्राम चलता रहा। बाबाजी ने सेठ का रहन-सहन देख कर कहा, क्यों सेठ अब तुम्हारा जी जम गया होगा ? जब सेठ श्रीे नाथजी के आगे शीष झुका कर कहा, हे नाथ बाबाजी ! यह माया धन परवार सभी आपका ही दिया हुवा है, हम तो सिर्फ स्वार्थ के विवस होकर धन की धणियाप (अधिपत्य) कर रहे हैं, जब नाथजी बोले सेठ अब तेरा मन चाया (चाहा) कार्य सारा सिद्ध हो चुका है, अब दान पुण्य करते रहो, क्योंकि धर्म करने से ही धन का बढ़ावा होता है, क्योंकि यह मनुष्य योनी बार-बार नहीं मिल सकती है। यह धन, माया, परवार एवं घर, सोना-चांदी सब यहां ही धरा रह जायेगा, इसलिये संतों का यही उपदेश है कि हर समय भगवान को याद रखो, अब वृद्ध अवस्था आ चुकी है ओर स्वांस का कोई इतबार नहीं है। इतनी कह कर श्री नाथजी बोले कि मैं कल यहां से रवाना होना चाहता हूँ, मैं चार दिन यहां रह चुका हूँ, जब सेठ की धर्मपत्नी रूक्मणी देवी तथा दुर्गाप्रसाद, द्वारकाप्रसाद, मन्नालाल, ओमप्रकाश और बिनोद ने और रूकने के लिए बहुत कहा लेकिन दूसरे दिन बाबाजी वहां से विदा हो चुके क्योंकि संत लोग किसी से मोहबन्धन नहीं रखते और न ही गृहस्ती घर रहना पसन्द करते फिर स्वामी जी महाराज ग्राम सातड़ा निजी आश्रम पर आ पहुंचे जब दिन पर दिन निकलते गये और कागज पत्रों से समाचार आते जाते रहे। फिर डेढ़ साल बाद में सेठजी दुबारा बीमार पड़ गये तो वहां बैद डाक्टरों को दिखाया लेकिन अचानक मौत ने घेरा दे दिया।

सेठ-सेठानी एवं उनके परवार सहित बहुत खुशी होकर संत स्वागत किया ओर बाहर से बहुत लोग दर्शनादिक आये और हर रात सतसंग का प्रोग्राम चलता रहा। बाबाजी ने सेठ का रहन-सहन देख कर कहा, क्यों सेठ अब तुम्हारा जी जम गया होगा ? जब सेठ श्रीे नाथजी के आगे शीष झुका कर कहा, हे नाथ बाबाजी ! यह माया धन परवार सभी आपका ही दिया हुवा है, हम तो सिर्फ स्वार्थ के विवस होकर धन की धणियाप (अधिपत्य) कर रहे हैं, जब नाथजी बोले सेठ अब तेरा मन चाया (चाहा) कार्य सारा सिद्ध हो चुका है, अब दान पुण्य करते रहो, क्योंकि धर्म करने से ही धन का बढ़ावा होता है, क्योंकि यह मनुष्य योनी बार-बार नहीं मिल सकती है। यह धन, माया, परवार एवं घर, सोना-चांदी सब यहां ही धरा रह जायेगा, इसलिये संतों का यही उपदेश है कि हर समय भगवान को याद रखो, अब वृद्ध अवस्था आ चुकी है ओर स्वांस का कोई इतबार नहीं है। इतनी कह कर श्री नाथजी बोले कि मैं कल यहां से रवाना होना चाहता हूँ, मैं चार दिन यहां रह चुका हूँ, जब सेठ की धर्मपत्नी रूक्मणी देवी तथा दुर्गाप्रसाद, द्वारकाप्रसाद, मन्नालाल, ओमप्रकाश और बिनोद ने और रूकने के लिए बहुत कहा लेकिन दूसरे दिन बाबाजी वहां से विदा हो चुके क्योंकि संत लोग किसी से मोहबन्धन नहीं रखते और न ही गृहस्ती घर रहना पसन्द करते फिर स्वामी जी महाराज ग्राम सातड़ा निजी आश्रम पर आ पहुंचे जब दिन पर दिन निकलते गये और कागज पत्रों से समाचार आते जाते रहे। फिर डेढ़ साल बाद में सेठजी दुबारा बीमार पड़ गये तो वहां बैद डाक्टरों को दिखाया लेकिन अचानक मौत ने घेरा दे दिया।

जब नाथजी महाराज बोले गणेशनाथ क्या बताऊं आपको यह गृहस्ती पंथ वाले नित गुण चाहने वाले होते हैं, जैसे शिकारी बन कर जंगली शेर को पिंजरे में बंद कर लेते हैं वैसे ही मैं वहां जाकर उलझन के जाल में फंस गया था, क्योंकि उनसे मोह करने के कारण मैं सब कुछ खो चुका हूँ, जैसे जड़ भरत राज एक हिरणी के बच्चे पर मोहितकर अपने प्राण न्यौछावर कर दिया था, फिर हिरणी के गर्भ से ही दुबारा जन्म लेना पड़ा वैसे ही परिस्थिति मेरे पर आ चुकी है सो समय आने पर आप देख लेना। इतनी कह कर श्री नाथजी बोले बल मैं आराम करना चाहता हूँ, क्योंकि में दस दिनों से हैरान (परेशान) होकर बड़े मुश्किल से निकल कर आया हूँ। सभी शिष्यगण नाथजी के हाथ पैर दबाने लगे फिर भोजन करवाया जब नाथजी महाराज विश्राम करने लगे, जब तीन घण्टों के बाद नाथजी ने कहा कि मुझे नींद नहीं आई और शरीर कुछ कम्पायमान सा रहता है तो फिर चेहने का पानी दिनों दिन फीका पड़ने लगा, जब अन्न, पानी और निन्द्र तीनों की तलांजली देकर मौन धारण कर लिया और आप एकान्त में धुणे पर सेवन करने लगे जब चालीस दिन घोर तपस्या में निकल गये, जब नाथजी महाराज शरीर से बिल्कुल कमजोर हो गये तो बहुत लोगों ने समझाया लेकिन अपना प्रण तोड़ा नहीं, क्योंकि वो प्राणों की बाजी पहले ही हार चुके थे, क्योंकि सेठ रामेश्वरलाल के पुत्र बिनोदकुमार को सरजीवन करके अपनी जीवनलीला समाप्त कर गये, वो विक्रम संवत 2032 आसाढ़ बदी 3 तीज शुक्रवार को शिव चरण हो गये। मन्नाथी संत संप्रदाय में तीन दिनों तक शोक सन्नाटा सा छा गया, उसी समय मेरे गुरूदेवन के शिष्य सभी मौजूद थे पहले मेरा दूसरा नाम था फिर दरभेशधारण करने के समय श्री ज्ञाननाथ नाम रख दिया। श्री वर्षानाथ, श्री शान्तिनाथ, श्री रतननाथ, श्री पुर्णनाथ, श्री वारूनाथ यह नाथजी महाराज के सच्चे शिष्य सेवग माने गये हैं,

इसी में से कई संत बाद में भी आये हैं। इसी समय ग्राम सातड़ा के सभी सेवग संग अथवा दूसरे गांवों के भक्त लोग समाधी के समय आकर भरपूर भीड़ लगने लगी और मेरे मन्नाथी संत संप्रदाय के संत मुर्तियां बहुत से आकर मेरे गुरूदेव श्री मकड़ीनाथ महाराज को उन्होंने हाथों से समाधी दी गई एवं सभी लोगों ने बहुत से फूल बरसाये तथा राम कथा किरतन किया गया जब श्री नाथजी महाराज की जय जय ध्वनी की गूंज करने लगे। सभी लोग उनकी दिव्य दृष्टी एवं चमत्कारों का उल्लेख करने लगे और कहने लगे कि ऐसा महान् संत सतवादी समर्थ वचनसिद्ध दयाधर्मी एवं परोपकारी आज कल, कलयुगी जमाने में बहुत कम होते हैं। ऐसे गुणधारी संत के आश्रम पर आज भी कार्य सिद्ध होते हैं। जय हो गुरूदेव ! क्योंकि श्री मकड़ीनाथजी की तकड़ी (कठिन) तपस्या के कारण आना योग सन्यास एवं जोगारम की कड़ी तपस्या के आधार से उन्हें अपनी मोक्ष मुक्ति का मार्ग मिला, स्वामीजी के देहान्त के बाद इसी आश्रम पर रात दिन कीर्तन भजन होते रहे। आसाढ़ बदी अमावस को रात्रि के जागरण लगवाया, जब सभी ग्रामवासियों एवं भजन मण्डली वालों को प्रसाद बांटा गया। घर जाते समय सभी सेवग संग जय जयकार करने लगे फिर समय के अनुसार सालों साल जागरण प्रसाद होता रहा। उनके बाद यज्ञ हवन और बड़ा भण्डारा गुरूदेव की कृपा से विक्रम संवत 2037 चैत्र सुदी तेरस को हुवा उसमें दूर-दूर देशों तक संत महात्माओं को निमंत्रण पत्र दिया गया। उस समय मन्नाथी संतों का मेला भरपूर भर गया था और भी बहुत से संत भगवांधारी आये थे क्योंकि संतों का नौ नाथ पंथ बताते हैं, कोई राम सनेही कहते हैं, कोई दादूपंथी कहलाते हैं, कोई कहता मैं वैष्ण्वपंथ का हूँ, कोई बैरागी बताते हैं एवं कोई कहते हम कबीरपंथी हैं, कोई निरंजणीनाथ कहते हैं

और सांगलपत्ती और बैराजी पंथ वाले धु्रणधारी खड़त तपस्या करने वाले सनकाधारी संत अथवा गिरीपुरी भरती संत भण्डारे के उत्सव पर आये थे। कुल संत मुर्तियों की गणना पचास सौ तक पहुंच गई थी, इसी भण्डारे के अग्रिम कार्यकरता पुज्य श्री हनुमाननाथजी महाराज के सार सम्भाल में हुवा। भण्डारे का काम तीन दिन तक चलता रहा देखो चैत सुदी तेरस चैवदस और पुर्णिमा तक भोजन भण्डारा खुला रहा और बाहर बस्ती वाले सेवग शिष्य कई भाव भक्ति वाले हरिकीर्तन भजन करने के लिये आये हुवे थे इसी संत मेले में दसों हजार तक जनगणना का अनुमान लगाया गया था। ये सारे राजस्थान में सराहनीय भण्डारा माना गया था अथवा संत मुर्तियों की अच्छी सेवा की गई और संत बिदाई पर अच्छी भेंट दी गई, यह ग्राम सातड़ा संत जन्म एक पावन भोमी मानी जाती है और इसी गांव सातड़ा के नगर निवासियों ने भण्डारे के समय बहुत तन-मन ज्यान से सत्योगी बने, यह बात तो मेरे सन्मुख देखने में आई है, क्योंकि मैं मेरे गुरूदेव श्री मकड़ीनाथजी महाराज के शिष्य विक्रम संवत 2020 में सेवा सहयोगी बना था। उस समय मन्नाथी संतों का मेला भरपूर भर गया था और भी बहुत से संत भगवांधारी आये थे क्योंकि संतों का नौ नाथ पंथ बताते हैं, कोई राम सनेही कहते हैं, कोई दादूपंथी कहलाते हैं, कोई कहता मैं वैष्ण्वपंथ का हूँ, कोई बैरागी बताते हैं एवं कोई कहते हम कबीरपंथी हैं, कोई निरंजणीनाथ कहते हैं और सांगलपत्ती और बैराजी पंथ वाले धु्रणधारी खड़त तपस्या करने वाले सनकाधारी संत अथवा गिरीपुरी भरती संत भण्डारे के उत्सव पर आये थे। कुल संत मुर्तियों की गणना पचास सौ तक पहुंच गई थी, इसी भण्डारे के अग्रिम कार्यकरता पुज्य श्री हनुमाननाथजी महाराज के सार सम्भाल में हुवा।

भण्डारे का काम तीन दिन तक चलता रहा देखो चैत सुदी तेरस चैवदस और पुर्णिमा तक भोजन भण्डारा खुला रहा और बाहर बस्ती वाले सेवग शिष्य कई भाव भक्ति वाले हरिकीर्तन भजन करने के लिये आये हुवे थे इसी संत मेले में दसों हजार तक जनगणना का अनुमान लगाया गया था। ये सारे राजस्थान में सराहनीय भण्डारा माना गया था अथवा संत मुर्तियों की अच्छी सेवा की गई और संत बिदाई पर अच्छी भेंट दी गई, यह ग्राम सातड़ा संत जन्म एक पावन भोमी मानी जाती है और इसी गांव सातड़ा के नगर निवासियों ने भण्डारे के समय बहुत तन-मन ज्यान से सत्योगी बने, यह बात तो मेरे सन्मुख देखने में आई है, क्योंकि मैं मेरे गुरूदेव श्री मकड़ीनाथजी महाराज के शिष्य विक्रम संवत 2020 में सेवा सहयोगी बना था। बारह वर्ष के बाद गुरू महाराज शिव शरण होकर स्वर्गवास को सिधार गये थे, इसी साल संवत के अनुसार आज सत्ताईस साल गुजर चुके हैं, फिर भी हर हमेशा मेरे गुरूदेव महाराज की ज्ञान भरी बातें मुझे याद आ रही हैं, क्योंकि इसी कलयुग जमाने में ऐसी योगसाधना और वचनसिद्ध महापुरूष कोई-कोई ही बिरला ही पाया जाता है वैसे तो यह धरती धरा पर बहुत से संत सत्तवादी महापुरूष बड़े-बड़े महात्मा योगेश्वर हुये हैं, जो गीताप्रेस गोरखपुर में छपने वाली संत वाणी ग्रंथ में उल्लेखनीय में कहा है कि नौ नाथ एवं चैरासी सिद्धों का वर्णन दिया गया है। श्री लीलाधार शर्मा गोरख संहिता एवं हठयोग गं्रथ में बत्तीस शाखायें बताई हैं तथा आठ सिद्धियों का ही प्रमाण बताया गया है, उन में मन्नाथी संत संप्रदाय ग्रंथ में आठ सिद्ध नवनाथ पंथ बतलाते हैं। को प्रसाद बांटा गया। घर जाते समय सभी सेवग संग जय जयकार करने लगे फिर समय के अनुसार सालों साल जागरण प्रसाद होता रहा। उनके बाद यज्ञ हवन और बड़ा भण्डारा गुरूदेव की कृपा से विक्रम संवत 2037 चैत्र सुदी तेरस को हुवा उसमें दूर-दूर देशों तक संत महात्माओं को निमंत्रण पत्र दिया गया। उस समय मन्नाथी संतों का मेला भरपूर भर गया था और भी बहुत से संत भगवांधारी आये थे क्योंकि संतों का नौ नाथ पंथ बताते हैं, कोई राम सनेही कहते हैं, कोई दादूपंथी कहलाते हैं, कोई कहता मैं वैष्ण्वपंथ का हूँ, कोई बैरागी बताते हैं एवं कोई कहते हम कबीरपंथी हैं, कोई निरंजणीनाथ कहते हैं

भण्डारे का काम तीन दिन तक चलता रहा देखो चैत सुदी तेरस चैवदस और पुर्णिमा तक भोजन भण्डारा खुला रहा और बाहर बस्ती वाले सेवग शिष्य कई भाव भक्ति वाले हरिकीर्तन भजन करने के लिये आये हुवे थे इसी संत मेले में दसों हजार तक जनगणना का अनुमान लगाया गया था। ये सारे राजस्थान में सराहनीय भण्डारा माना गया था अथवा संत मुर्तियों की अच्छी सेवा की गई और संत बिदाई पर अच्छी भेंट दी गई, यह ग्राम सातड़ा संत जन्म एक पावन भोमी मानी जाती है और इसी गांव सातड़ा के नगर निवासियों ने भण्डारे के समय बहुत तन-मन ज्यान से सत्योगी बने, यह बात तो मेरे सन्मुख देखने में आई है, क्योंकि मैं मेरे गुरूदेव श्री मकड़ीनाथजी महाराज के शिष्य विक्रम संवत 2020 में सेवा सहयोगी बना था। बारह वर्ष के बाद गुरू महाराज शिव शरण होकर स्वर्गवास को सिधार गये थे, इसी साल संवत के अनुसार आज सत्ताईस साल गुजर चुके हैं, फिर भी हर हमेशा मेरे गुरूदेव महाराज की ज्ञान भरी बातें मुझे याद आ रही हैं, क्योंकि इसी कलयुग जमाने में ऐसी योगसाधना और वचनसिद्ध महापुरूष कोई-कोई ही बिरला ही पाया जाता है वैसे तो यह धरती धरा पर बहुत से संत सत्तवादी महापुरूष बड़े-बड़े महात्मा योगेश्वर हुये हैं, जो गीताप्रेस गोरखपुर में छपने वाली संत वाणी ग्रंथ में उल्लेखनीय में कहा है कि नौ नाथ एवं चैरासी सिद्धों का वर्णन दिया गया है। श्री लीलाधार शर्मा गोरख संहिता एवं हठयोग गं्रथ में बत्तीस शाखायें बताई हैं तथा आठ सिद्धियों का ही प्रमाण बताया गया है, उन में मन्नाथी संत संप्रदाय ग्रंथ में आठ सिद्ध नवनाथ पंथ बतलाते हैं। को प्रसाद बांटा गया। घर जाते समय सभी सेवग संग जय जयकार करने लगे फिर समय के अनुसार सालों साल जागरण प्रसाद होता रहा। उनके बाद यज्ञ हवन और बड़ा भण्डारा गुरूदेव की कृपा से विक्रम संवत 2037 चैत्र सुदी तेरस को हुवा उसमें दूर-दूर देशों तक संत महात्माओं को निमंत्रण पत्र दिया गया। उस समय मन्नाथी संतों का मेला भरपूर भर गया था और भी बहुत से संत भगवांधारी आये थे क्योंकि संतों का नौ नाथ पंथ बताते हैं, कोई राम सनेही कहते हैं, कोई दादूपंथी कहलाते हैं, कोई कहता मैं वैष्ण्वपंथ का हूँ, कोई बैरागी बताते हैं एवं कोई कहते हम कबीरपंथी हैं, कोई निरंजणीनाथ कहते हैं
क्योंकि मैं मेरे गुरूदेव श्री मकड़ीनाथजी महाराज के शिष्य विक्रम संवत 2020 में सेवा सहयोगी बना था। बारह वर्ष के बाद गुरू महाराज शिव शरण होकर स्वर्गवास को सिधार गये थे, इसी साल संवत के अनुसार आज सत्ताईस साल गुजर चुके हैं, फिर भी हर हमेशा मेरे गुरूदेव महाराज की ज्ञान भरी बातें मुझे याद आ रही हैं, क्योंकि इसी कलयुग जमाने में ऐसी योगसाधना और वचनसिद्ध महापुरूष कोई-कोई ही बिरला ही पाया जाता है वैसे तो यह धरती धरा पर बहुत से संत सत्तवादी महापुरूष बड़े-बड़े महात्मा योगेश्वर हुये हैं, जो गीताप्रेस गोरखपुर में छपने वाली संत वाणी ग्रंथ में उल्लेखनीय में कहा है कि नौ नाथ एवं चैरासी सिद्धों का वर्णन दिया गया है। श्री लीलाधार शर्मा गोरख संहिता एवं हठयोग गं्रथ में बत्तीस शाखायें बताई हैं तथा आठ सिद्धियों का ही प्रमाण बताया गया है, उन में मन्नाथी संत संप्रदाय ग्रंथ में आठ सिद्ध नवनाथ पंथ बतलाते हैं। उनके अलावा डाॅ. पितम्बर दत्त ने भी कई संत महिमा की पुस्तकें लिखी। इसमें बारा शाखा का ही उल्लेख किया है, उसने बताया सत्तनाथी, धर्मनाथी, रामपंथी, नाटेश्वरी, कन्नड़, कपजानी, बैराग पंथी, माननाथी, आईपंथ, पागलपंथ, धजपंथ, गंगानाथी, आगे नो नाथों का वर्णन कथानुसार बताया। अणिमा महिमां गरिमा लबिया प्रायः परिकम्य इस्वत्व ससित्व योगेत्स में से आठों को मान्यता दी गई है । नाथ सम्प्रदाय में आगे बताया गया है कि नित्य सिद्ध अचालक सिद्ध स्वप्न सिद्ध कृपासिद्ध हस्तसिद्ध उसमें से कई संतों ने कान नहीं चिरवाये, वो कुछ नीचे श्रेणी में माने जाते हैं और ओषड़ कहलाते हैं। इसी के आगे हमने सुना कि गोरखनाथजी मन्दिर खुद शिवजी ने बनवाया था, श्री गोरखनाथजी की जनम उत्पत्ति गोदावरी तीर चन्द्रगिरी में हुवा बताते हैं। ये चारों युगों के अवतारी माने गये हैं, यह चिन्तामणी पुस्तक के अनुसार मैंने कहा है यह तेरहवी शताब्दी की बात बता रहा हूँ, उसी समय अल्लाउद्दीन खिलजी ने सोमनाथ का मन्दिर तुड़वाया था कोई ईस्वी सन् 945 बताते हैं और कोई 998 इस्वी सन् बताते हैं, इनके अनुसार मैं पुर्वकाल में कई महापूजनीय शिरोमणी संतों का विवरण दे रहा हूँ, क्योंकि मैंने इस गुरू महिमा में महा योगेश्वर संतों का वर्णन बहुत कम किया है, इसलिये कुछ संतों के नामावली का परिचय दे रहा हूँ। इस समय से पहले जो संत हुवे हैं, श्री आदिनाथजी, गोरखनाथजी, श्री जलन्द्रनाथ, मच्छेन्द्रनाथ, चान्दनाथ, नमीनाथ, नीमनाथ, दिग्विजयनाथ, जवेधनाथ और पारसनाथ ये उच्चकोटि के महापूजनीय महात्मा हुवे हैं। फिर इसके बाद श्री अमृतनाथजी की आज्ञा अनुसार मोहननाथजी, भानीनाथजी, द्वारकानाथजी को अपना शिष्य बनाकर दिक्षा दी गई। इनसे पहले श्री कृष्णनाथ, श्री लालनाथ जी शिष्य बन चुके थे।
श्री अमृतनाथजी महाराज विक्रम संवत 1973 में अपना शरीर छोड़ कर शिवशरण हो गये श्री किसननाथजी फतेहपुर से चूरू आकर रहने लगे। श्री ज्योतिनाथजी महाराज ने फतेहपुर आश्रम पर बहुत दिनों तपस्या की उनके बहुत से शिष्य पूजनीय संत हुये हैं। श्री मकड़ीनाथजी महाराज ग्राम सातड़ा में आश्रम स्थापन किया। अब मैं पूर्व काल के समय जो महापुरूष दृसनादिक संत हुवे हैं, उनके नामों का वर्णन कर रहा हूँ और संतों का नाम बता रहा हूँ। यह ग्राम सातड़ा एक स्वर्गपुरी की तरह एक पवित्र भोमी है, इसी धर्म स्थल पर बहुत से संतों ने जन्म लिया है, यह गांव तहसील जिला चूरू राजस्थान में एक मुख्य स्थान माना गया है, जो यहां संत शिरोमणी पूजनीय हुवे हैं, उनकी कथना अनुसार नामों का वर्णन कर रहा हूँ, हमने सुना है कि श्री गणेशनाथजी महाराज सातड़ा के नगर निवासी थे। उन्होंने ब्राह्मण के घर जन्म लिया था और दूसरा संत श्री भानीनाथजी महाराज हुये जो चूरू शहर में चमत्कार दिखाने वाले महापूजनीय संत हुये, वे भी सातड़ा के घर बासिन्दा थे, अब चैथा श्री संध्यानाथजी महाराज हुये हैं, वो भी सातड़ा के खानदानी घर में अवतारित हुए हैं, पांचवां श्री शान्तिनाथजी महाराज हुये सर्वशुभ सातड़ा नगरी में हुआ है, छटा श्री केशरनाथजी महाराज हुये पिता श्री फुसारामजी घर सातड़ा नगरी में, सांतवा श्री तोतानाथजी महाराज सातड़े के ही रहने वाले थे, नोवां नम्बर श्री शंकरनाथजी महाराज हुये, पिताश्री भवांरामजी सातड़े वाले के सुपुत्र, दसवां श्री लादुनाथजी महाराज पिता श्री मेघारामजी के पुत्र सातड़ा स्थल पर, ग्यारहवां श्री हुसियारनाथजी महाराज सातड़ा गांव में पिता श्री जीवणराम जी के पुत्र थे, बारहवां श्री भोलानाथजी महाराज हुये पिता श्री मघारामजी के घर शुभधाम सातड़ा नगर में एक ब्राह्मण के घर, तेरहवां संत श्री योगेन्द्रनाथजी महाराज हुये पिता श्री गणपतरामजी चैधरी के घर जन्म हुआ ग्राम सातड़ा में, चैदहवा श्री छोटीनाथजी महाराज हुये हैं सातड़ा में एक जाट के घर जन्म लिया था, पन्द्रहवां श्री मंगतुनाथजी महाराज हुये श्री सातड़ा नगर में, सोलहवां श्री गौमतीनाथजी महाराज हुये हैं इसी सातड़ा गांव में, सतरहवां श्री डूंगरनाथजी महाराज पूजनीय संत हुवे हैं, अठारवां श्री रूपनाथजी महाराज हुये हैं, उन्नीसवां श्री रविन्द्रनाथजी हुवे हैं सातड़ा नगर में, बीसवा श्री सन्तोषनाथजी महाराज पिता श्री मालुरामजी जाट के घर जन्म लिया, इक्कीसवां शम्भुनाथजी महाराज पिता श्री पुर्णारामजी जाट के घर जन्म लिया, बाइसवां श्री सोमनाथजी महाराज पिता श्री सुरजाराम जी शर्मा के घर जन्म लिया, तेइसवां श्री सुकानाथजी पिता श्री श्रीराम शर्मा, चैबीसंवा संत श्री शांतीनाथजी पिता श्री नराणाराम जाट के घर सातड़ा में जन्म हुवा, पच्चीसवां वर्षानाथजी महाराज मवजूद (मौजूद) है पिता श्री डूंगररामजी जाट के घर जन्म सातड़ा में लिया है, छब्बीसवां श्री वारूनाथजी महाराज पिता श्री सुरजाराम जाट सातड़ा नगर निवासी, सत्ताईसवां श्री रतननाथजी महाराज पुत्र श्री ज्ञानाराम जाट के घर जन्म लिया, आज भी मौजूद है और आज इसी वक्त पुज्य श्री स्वामीजी महाराज ज्ञाननाथजी सातड़ा आश्रम गद्दी पर बिराजमान हैं। वैसे तो आप देखें तो बड़े-बड़े शहरों में भी इतने संत मुर्तियों का जन्म नहीं हुवा है और न ही सुना है, क्योंकि वो सदा से ही संत प्रवृत्ति तथा भाव भक्ती वाले श्री भानीनाथजी के आश्रम पर हमेशा आया-जाया करते थे, इसी कारण संत गणना बढ़ती गई फिर एक समय श्री मकड़ीनाथजी महाराज चूरू शहर से ग्राम सातड़ा में पहुंचे तो जाट समसान भोमी में रहने लगे यह आज से पचपन-साठ वर्ष पहले की बात संत वाणी के अनुसार कह रहा हूँ। मैं फिर दो वर्षों के बाद में श्री मकड़ीनाथजी महाराज गांव सातड़ा में दक्षिण और पश्चिम दिशा में शिव मन्दिर निजी आश्रम की स्थापना की और अपने जोग्या व्यास की कड़ी तपस्या करने लगे, क्योंकि गुरू समर्थ श्री ज्योतिनाथजी महाराज की माया दी हुई थी और उनके पिता श्री जोधराज जांगिड़ और माता हुलसी ने पांच वर्ष की उमर से पहले अपने लाल को संतों की शरण में छोड़ दिया था इसी कारण वो भाव भक्ति में लवलीन हो चुके थे, लोग दूर-दूर से दर्शनादिक (दर्शनार्थी) आने लगे तथा बहुत से सेवग संत और शिष्य बनने लगे।
पहला शिष्य श्री गणेशनाथजी एवं दूसरा शिष्य श्री मंगतुनाथजी हुवे और तीसरा शिष्य श्री ज्ञाननाथजी महाराज हुवे तथा श्री शम्भुनाथजी हुवे और लेखरामनाथजी सच्चे शिष्य सेवग थे। ये सभी एक पूजनीय महान् मूर्ति के समान थे और इसी आश्रम का काम दिनों दिन बढ़ता रहा, क्योंकि बाबा मकड़ीनाथजी महाराज तो एक मौनी महात्मा थे, ना किसी के साथ ज्यादा बोलना चाहते थे और ना किसी के साथ हंसना चाहते थे, क्योंकि संतों का स्वभाव संसारिक से अलग ही होता है, इसलिये किसी से बात नहीं करते थे, कभी-कभी सतसंग और ज्ञान चर्चा में रूची लेते थे और इनके सिवाय कुछ नहीं चाहते थे, क्योंकि उन्हें अपने जोगारम की साधना सिद्ध करने की पूरी तरह से कामना की थी, सुबह शाम शिवालय में जाकर शिवलिंग पर फूल चढ़ाना, रूद्राक्ष माला जपना और ओम शिवाय नमः, ओम शिवाय नमः मूल मंत्र का जपना हर हमेशा के लिये नित्य नियम था तथा दोपहर के दो बजे कड़ी धूप में बैठकर पंच धुणियों का सेवन किया करते थे। रात के समय पर समशान भोमी में सेवन करने को चला जाया करते थे, फिर सुबह चार बजते ही निजी आश्रम पर आ जाया करते थे, क्योंकि सभी देवताओं से पहले काशी विश्वम्भरनाथ महादेव का पूजन होता है, इसीलिये सावधानी से अपने मनोमत से चलते थे फिर उनके बाद विक्रम सवंत 2008 में इसी आश्रम पर एक कुवां बनवाया। बाबाजी बिजली लगाने की कोशिश में इधर-उधर फिरने लगे तो सभी बिजली कर्मचारियों ने कहा कि नाथ जी महाराज इसी लाइन से बिजली नहीं मिलेगी आपको, क्योंकि ये तैतीस हजार बोलटेज (वोल्टेज) की लाइन चल रही है, वो खतरे की घण्टी है, हमें इसी लाइन से बिजली लेनी है, जब बाबाजी और श्यामलाल भरतीया चूरू वाले दोनों जयपुर जाकर चीप मुनिष्ट्र (चीफ मिनिस्टर) से बिजली लाइन पास करवाली, जब चूरू रतनगढ़ वालों ने कहा ऐसा नहीं होगा। बाबाजी जब श्रीनाथजी ने कहा ऐसा ही होगा जब विक्रम संवत् 2020 में कुवा कनक्सन करवाया, सातड़ा गांव में मीठा फ्री पानी मिलने लगा। सभी नाथजी महाराज की जय जयकार करने लगे इसी आश्रम पर कई कमरा और दरवाजा बनाया गया तथा हर हमेशा भक्त सेवगों की भीड़ लगी रहती तो एक समय श्री नाथजी महाराज अपने शिष्यगणों से कहने लगे कि मैं अब दिनों दिन कमजोर होते जा रहा हूँ तो इसी नासवान शरीर का क्या विश्वास है, तो इसी समय विक्रम संवत् 2020 में से पहले ही बाबाजी की सेवा स्मरपण श्री ज्ञाननाथजी महाराज करने लगे। नाथजी महाराज सेवा से संतुष्ट होकर ज्ञाननाथजी को ज्ञान मंत्र देकर अपना शिष्य मान चुके थे और गुरू-चेलों की तालमेल अच्छी चल रही थी, सभी लोग प्रशंसा करने लगे।
ऐसे ही साल महीना दिन-रात निकलता गया, जब एक समय श्री नाथजी महाराज ने कहा कि अब बच्चा हमारी समाधि तैयार होनी चाहिये क्योंकि इसी संसार में ज्यादा जीने वाले दुखी होते हैं, जब शिष्य ज्ञाननाथजी ने कहा कि नहीं महाराज आप ऐसे मत कहो क्योंकि मैं इसी आश्रम पर अकेला नहीं रहूँगा और आप मुझे छोड़ कर चले जावोगे। जब नाथजी महाराज बोले बच्चा तूं अब तक मेरी बात को समझ नहीं सका है, मेरे कहने का यह अर्थ है कि भक्त कबीरदास ने कहा है कि ‘‘उग्यो सो तो आथण्यो और फुल्योसो कुमल्याय, बणियो दिवलो धुड़पड़े तो जन्मे सो मरज्याया।।’’ यह शब्द की पंक्ति सुन कर ज्ञाननाथजी को ज्ञान हुवा कि बाबाजी कितनी विलक्षण बाते कह रहे हैं। थोड़े दिनों बाद में अपनी समाधि तैयार करके कहीं भरमण करने को बाहर चले गये आगे देश-विदेश भ्रमण करते हुए गढ़भेता पहुंचे, जब वहां बंगाल के सेठ रहते थे तो वहां दो-तीन दिन रहे तो सेठ रामेश्वरलाल का पुत्र बिनोद यहां रहता था, उसी दिन बिनोद ने एक मोटर साइकिल खरीदी तो बाबाजी ने कहा कि यह मोटर साइकिल बहुत खतरनाक है, उसको आप वापिस लौटा दो। बिनोद ने बाबाजी की बात का उल्लंघन कर दिया बाबाजी सुबह सिलोंग के लिये रवाना हो गये वहां बिनोद की बड़ी बहन रहती थी, वहां नाथजी महाराज जा पहुंचे, वहां जाकर अपना आसन जमाकर बैठ गये बिनोद की बड़ी बहन त्रविणी ने बहुत सतकार किया और बाबाजी के चरणों में बार-बार नमस्कार करके हंसने लगी और कहने लगी महाराज मैं बहुत सौभाग्यवान हूँ जो आप हमारे घर आये हो, जैसे भिलनी के घर भगवान आये थे, इसी तरह मैं मग्न होकर उत्सव मनाना चाहती हूँ, जब श्रीनाथजी महाराज बोले बच्चा ज्यादा उत्सव मनाना अच्छा नहीं होता, क्योंकि इसी सांसारिक में एक दिन हंसता है तो फिर दो दिन रोता है, क्योंकि यह दुनियां एक दुःख की दरिया है इसमें जीव मात्र सभी दुख को सुख मान कर अपनी जिन्दगी वसूल कर लेते हैं। इतनी कह कर श्री महाराज जी अपने आसन पर जाकर बिराजमान हुये और त्रविणी रसोई चुल्हे चैके का काम करने लगी। श्री नाथजी अपनी चद्दर ओढ़कर आसन पर लेट गये लेकिन श्री मकड़ीनाथजी महाराज को नींद नहीं आई और चमक कर घुरमोड़े की तरफ दौड़ते गये तथा कहने लगे अरे क्या हुवा ? क्या हुवा ? यह हल्ला सुन कर त्रबिणी रसोई से बाहर दौड़ कर आई और पूछने लगी, हे नाथजी महाराज ! क्या हो गया ? आपके इतनी देर में ही जब जोगीराज बोले कि आज कल के बच्चे मानते नहीं हैं, मैं उन्हें पहले कह दिया था अब कर्मों का फल भोगते रहो इतने में फोन की घण्टी बजने लगी तो उसमें कहा कि बिनोद का अक्सीडेन्ट हो गया, त्रविणी बेहोस होकर गिर गई, जब बिनोद को जीवनदान दे दिया।