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यह ग्राम सातड़ा एक सन्त भोमी है, यहाँ बहुत से संतों का जन्म निवास है यह बात मैं आपको पहले पृष्ठों में बता चुका हूँ, जो बड़े-बड़े शहरों में भी इतने संत प्रचारित नहीं हुवें हैं। धन्य हो इसी धरती माता को जो दूर-दूर से लोग दर्शन करने को आते हैं और श्री मकड़ीनाथजी के चमत्कारों की आज भी अजमाइस करते हैं उनका कार्य सफल सिद्ध होता है ओर यहाँ कई पाखण्डी ढोंग रचने वाले आते हैं, उनकी पोल खुल जाती है तथा वो अफसोस एवं अचुम्बें में पड़ जाता है। यह मेरे गुरूदेवन के घुणे का प्रभाव है क्योंकि मैंन मेरे गुरूदेवन की बारह वर्ष तक सेवा की है, फिर मेरे गुरूजी विक्रम संवत 2032 में शिवशरण हो गये तो मैंने मन्नाति संत संप्रदाय के संयोगी मान कर मुझे भगवां बाना और कानों में कुण्डल धारण किया है।

मैं योग सन्यास चालीस वर्षों से चला रहा हूँ यह मरें गुरू देव की अत्यन्त कृपा है और शिव गोरख माया की महरबानी है। मैं ना कोई ज्यादा पढ़ा लिखा हूँ तथा ना कोई वेद शास्त्र का ज्ञाता हूँ, मुझे गुरू दिव्य दृष्टि देकर गुरू महिमा लिखने को कहा तो समय सार के अनुसार गुरू ज्ञानगेस सासेनी प्रगट होती है, मैं एकान्त में जंगली झोंपड़ी में ही रहने से राजी रहता हूँ, क्योंकि यहां जपतप योग साधना हो सकती है तथा लेखनी लिखने का भी समय मिल सकता है, सिर्फ बड़े आश्रम पर तो तीन घण्टा रहता हूँ, शेष इकीसूं घण्टे झोपड़ी में ही रहते हैं। कहीं बाहर घुमने की मुझे शौक नहीं है, मेरे सच्चे सेवग गोरूसिंह बीका, सरदार हर समय हाजिर रहते हैं। आश्रम पर शिष्य वर्षानाथ शान्तिनाथ, वारूनाथ ये चैकस सार संभाल रखते हैं। जय गुरूदेव! ा

 
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